भौतिक भूगोल एवं मूल सिद्धांत – भूआकृति विज्ञान (Geomorphology)

भूआकृति विज्ञान (Geomorphology)

1. पृथ्वी की पपड़ी की उत्पत्ति और विकास

पृथ्वी की पपड़ी (क्रस्ट) की उत्पत्ति और विकास एक लंबे भूवैज्ञानिक इतिहास की कहानी है, जिसमें पृथ्वी के ठंडा होने, विभेदन (Differentiation) और प्लेट टेक्टोनिक्स जैसी प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।

मुख्य बिंदु:

  1. प्रारंभिक अवस्था:

    • पृथ्वी के निर्माण के शुरुआती चरण में, लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले, हमारा ग्रह अत्यधिक गर्म और द्रव अवस्था में था।
    • इतनी अधिक तापमान के कारण पृथ्वी की सतह पर कोई स्थायी ठोस परत नहीं थी।
  2. ठंडा होना और विभेदन (Differentiation):

    • धीरे-धीरे जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी हुई, उसके द्रव पदार्थों में घनत्व के आधार पर अलगाव शुरू हुआ।
    • भारी तत्व (जैसे लोहा) पृथ्वी के केन्द्र में चले गए, जबकि हल्के तत्व (जैसे सिलिका) सतह की ओर उठने लगे।
    • इसी प्रक्रिया से प्रारंभिक क्रस्ट का निर्माण हुआ, जो मुख्य रूप से बेसाल्टिक चट्टानों से बनी थी।
  3. वृहत विकास और सतत परिवर्तन:

    • समय के साथ, ज्वालामुखीय गतिविधियाँ, उल्का-पिण्डों के प्रभाव, और प्लेट टेक्टोनिक्स ने इस प्रारंभिक क्रस्ट को लगातार संशोधित किया।
    • प्लेट टेक्टोनिक्स की प्रक्रिया के तहत, महाद्वीपीय क्रेटन (पुराने महाद्वीपीय खंड) का निर्माण हुआ, जो आज भी पृथ्वी की स्थायी परत का आधार हैं।
  4. विभिन्न परतों का गठन:

    • पृथ्वी की संरचना परतदार है – बाहरी क्रस्ट, मेंटल, बाहरी कोर और आंतरिक कोर।
    • क्रस्ट से लेकर आंतरिक भाग तक पदार्थ का घनत्व धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।

पृथ्वी की पपड़ी का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है जिसमें प्रारंभिक द्रव अवस्था से ठोस परत का निर्माण, विभेदन और प्लेट टेक्टोनिक्स के कारण महाद्वीपीय संरचनाओं का निर्माण शामिल है। इस प्रक्रिया ने न केवल पृथ्वी की सतह को स्थिर किया, बल्कि जीवन के लिए अनुकूल वातावरण के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. भू-चुंबकत्व, प्लेट टेक्टोनिक्स, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी, भूकंप, सुनामी

1. भू-चुंबकत्व (Earth Magnetism):

  • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के भीतरी भाग (मुख्यतः तरल लौह-निकल कोर) द्वारा उत्पन्न होता है।
  • यह क्षेत्र नेविगेशन (कंपास) के लिए महत्वपूर्ण है और जैविक गतिविधियों व मौसम प्रणालियों पर भी प्रभाव डालता है।

2. प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics):

  • पृथ्वी की पपड़ी कई बड़े टेक्टोनिक प्लेटों में विभाजित है जो धीमी गति से एक-दूसरे के सापेक्ष संचलित होती हैं।
  • इन प्लेटों की गतियों के कारण टकराव, फटाव और घिसाव जैसी प्रक्रियाएँ होती हैं, जो भूकंपीय गतिविधियाँ और महासागरीय दरारों का निर्माण करती हैं।

3. पर्वत निर्माण (Mountain Formation):

  • जब दो टेक्टोनिक प्लेटें टकराती हैं, तो उनके बीच संचित ऊर्जा से प्लेटें ऊपर उठती हैं और पर्वतों का निर्माण होता है।
  • उदाहरण के लिए, भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट की टकराहट से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है।
  • इस प्रक्रिया में अधोमुखी (प्लेट का एक-दूसरे के नीचे जाना) और उपमुखी (प्लेट का ऊपर उठना) घटनाएँ शामिल हैं।

4. ज्वालामुखी (Volcanoes):

  • ज्वालामुखी पृथ्वी के भीतरी भाग से मैग्मा (पिघला हुआ चट्टान पदार्थ) का सतह पर आना है।
  • जब टेक्टोनिक प्लेटों के बीच दरारें खुल जाती हैं, तो मैग्मा सतह पर आकर ज्वालामुखी विस्फोट कर सकता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में भारी विनाश हो सकता है।

5. भूकंप (Earthquakes):

  • भूकंप तब होते हैं जब टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं पर संचित ऊर्जा अचानक मुक्त होती है।
  • यह ऊर्जा सेइस्मिक तरंगों के रूप में यात्रा करती है, जिससे जमीन हिल जाती है।
  • भूकंप की तीव्रता, आवृत्ति और प्रभाव का अध्ययन भूगोल के अंतर्गत किया जाता है।

6. सुनामी (Tsunamis):

  • सुनामी विशाल समुद्री लहरें होती हैं, जो मुख्य रूप से समुद्री तल पर अचानक हुए भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या भूस्खलन के कारण उत्पन्न होती हैं।
  • ये लहरें तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश कर सकती हैं, जिससे जीवन और संपत्ति का नुकसान होता है।

3. नदियों का आकारिकी, कटाव और अपरदन

1. नदियों का आकारिकी (River Morphology)

  • परिभाषा:
    नदियों का आकारिकी उन भौगोलिक रूपों और संरचनाओं का अध्ययन है, जो नदियों द्वारा निर्मित या परिवर्तित होते हैं। इसमें नदी की उत्पत्ति, प्रवाह पथ, मोड़, घाटियाँ, डेल्टा आदि शामिल हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • उत्पत्ति स्थल: नदियों का जन्म ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों, ग्लेशियरों या पहाड़ियों से होता है।
    • प्रवाह पथ: नदी का पथ उसके स्रोत से लेकर समुद्र या झील तक चलता है, जो विभिन्न भूगोलिक परिघटनाओं से प्रभावित होता है।
    • नक्शे का निर्माण: नदियों के मोड़, शाखाएँ, और उनके द्वारा निर्मित भू-आकृतिक संरचनाएँ जैसे घाटियाँ, विस्टा एवं डेल्टा, नदियों की आकारिकी के प्रमुख भाग हैं।

2. कटाव (Erosion)

  • परिभाषा:
    कटाव वह प्रक्रिया है जिसमें नदी की गति और प्रवाह द्वारा भूमि की सतह से मिट्टी, चट्टानें और अन्य सामग्री हटाई जाती हैं।
  • प्रमुख प्रकार:
    • सतही कटाव: इसमें पानी सीधे तौर पर भूमि की ऊपरी सतह को हटा देता है।
    • दबाव कटाव: जब नदी तेज गति से बहती है, तो यह किनारे और तल से चट्टानों को तोड़कर ले जाती है।
    • विचलन कटाव: इसमें नदी की घुमावदार धाराएँ किनारों को धीरे-धीरे काटती हैं, जिससे वक्रता बढ़ती है।
  • प्रभाव:
    कटाव के कारण नदी के तट बदल जाते हैं, घाटियाँ गहराती हैं और कभी-कभी चट्टानों की संरचना में भी बदलाव आता है।

3. अपरदन (Deposition)

  • परिभाषा:
    अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें नदियाँ अपने साथ लाए गए अवशेष (मिट्टी, बालू, चट्टानों के टुकड़े) को धीमी गति से छोड़ देती हैं, जिससे नई भू-आकृतिक संरचनाएँ बनती हैं।
  • प्रमुख स्थान:
    • डेल्टा: जहाँ नदी समुद्र से मिलती है, वहां उसकी गति कम हो जाती है और भारी मात्रा में अवशेष जमा हो जाते हैं।
    • आंतरिक घाटियाँ: नदी के तल में अवशेष जमा होने से छोटी-छोटी झीलें या आंतरिक घाटियाँ बन सकती हैं।
    • किनारे पर जमा: नदी की मोड़ों में या घुमावदार धाराओं में अवशेष एकत्र हो जाते हैं।
  • महत्व:
    अपरदन से नई भूमि का निर्माण होता है, कृषि योग्य मिट्टी मिलती है, और नदी का तट संतुलित रहता है। साथ ही, यह प्रक्रिया पर्यावरणीय तंत्र को भी प्रभावित करती है।

नदियों की आकारिकी, कटाव और अपरदन प्राकृतिक प्रक्रियाओं का एक समूह है जो नदियों के जीवन चक्र में निरंतर बदलाव लाते हैं। इन प्रक्रियाओं की समझ न केवल भूगोल में बल्कि पर्यावरणीय प्रबंधन, जल संसाधन योजना और विकास योजनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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